जीवन में विडंबना का भी एक संयोग है. यदि यह कहें कि सकारात्मकता के साथ नकारात्मकता का समावेश ही जीवन है तो अनुचित नहीं होगा. अगर पनघट की चहल-पहल है तो मरघट का सन्नाटा भी जीवन में देखने को मिलता है. इसी चिंतन के साथ आज ताजमहल से साक्षात्कार करने की प्रबल इच्छा हुई और पहुंच गया ताजमहल के पास. देश में फैले कोरोना के डर से आम लोग तो दूर प्रेमी जोड़े भी प्यार के प्रतीक ताजमहल के दीदार से परहेज कर रहे हैं. एक समय पर पर्यटकों से गुलजार रहने वाले ताजमहल के चारों ओर आज सन्नाटा पसरा हुआ था. मानो शमशान की शांति हो, बिल्कुल निर्जन स्थान. गहरे सन्नाटे को चीरता हुआ मैं ताज महल के पास पहुंचा. मुझे ऐसा लगा कि मानो वह मेरी बाट जोह रहा हो. मेरे नजदीक जाने पर उसने मुझे आदर पूर्वक स्थान ग्रहण कराया.
मैंने कहकहा लगाया और ताजमहल से सीधा सवाल दाग दिया. मैंने पूछा- क्या से क्या हो गया? कुछ कहना चाहोगे इस अवसर पर?
उदास ताजमहल ने मुझे देखा और उसके स्वर फूट पड़े, कहने लगा- कहकहा लगाकर तुमने भी अपने मन की भावना को उजागर कर ही दिया बिल्कुल भी नहीं चूके तुम. यह सब समय की बात है. आज तुम ही क्या, मेरा अकेलापन और मेरी परछाई भी मेरा उपहास बना रही है
मैंने फिर कहकहा लगाते हुए और व्यंग करते हुए पूछा- तुम ताजमहल हो.
उसने उत्तर दिया- हां मैं ताजमहल हूं. स्वर्णिम इतिहास है मेरा, जब से अस्तित्व में आया, मैंने अपने आपको प्रशंसकों से घिरा पाया. उम्र के बढ़ने के साथ प्रशंसकों की संख्या में भी भारी इजाफा हुआ. स्वाति नक्षत्र की पहली बूंद मेरे नसीब में थी तो रिमझिम सावन की ठंडी फुहार, होली का फाग, ईद की खुशी, दीपावली की रोशनी, शारदीय चंद्र की चांदनी कोई भी पर्व मेरे बिना अधूरा था. इस कायनात के हर समुदाय ने मुझे चाहा और एक ही शब्द कहा "अद्वितीय."
मेरी शान में कसीदे पढ़े गए, कई हुकूमतें आईं और चली गईं, मैं सबका साक्षी हूं. हजारों-हजारों बादशाहों, राजाओं और राष्ट्राध्यक्षों ने मेरा दीदार किया. मेरी प्रशंसा में गीत गाए गए. नृत्यांगनाओं ने मेरे समक्ष अलौकिक नृत्य पेश किए. संगीत कला और साहित्य का प्रदर्शन किया. करोड़ों-करोड़ों लोगों ने मेरा दीदार किया और एक ही शब्द सबके मुख से अपनी भाषा में निकला "वाह ताज"
यमुना भी मेरे चरणों को नमन करते हुए आगे बढ़ती है क्योंकि मैं ताजमहल हूं. पर मैं था अहंकारी, अपने अहंकार में कभी किसी की प्रशंसा के प्रति आभार व्यक्त करना तो दूर, उन्हें नजरअंदाज किया और अपनी दुनिया में खुद ही मस्त रहा कि मुझ सा कोई और नहीं है.
काश! मैंने अपने प्रशंसकों की भावनाओं का आदर किया होता? उनका सत्कार किया होता? उनसे भावानात्मक संबंध बनाया होता? तो आज जो कष्ट मैं सहन कर रहा हूं उस कष्ट को सहन करने की क्षमता मुझे मिलती. अहंकार और दंभ ने मेरा अस्तित्व ही पंगु कर दिया. तभी तो मैं, मेरा अकेलापन और मेरी परछाई भी मुझसे शिकवा कर रही है क्योंकि मैं ताजमहल हूं.
Article Posted By Shri Subhash Dhal